नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 76वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन दिया। राष्ट्रपति ने देशवासियों को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं दी। राष्ट्रपति मुर्मू ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा कि न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व हमेशा से हमारी सभ्यतागत विरासत का हिस्सा रहे हैं। सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक भारत को कभी ज्ञान और बुद्धिमत्ता के स्रोत के रूप में जाना जाता था। उन्होंने कहा कि संविधान के 75 वर्ष एक युवा गणतंत्र की सर्वांगीण प्रगति द्वारा चिह्नित हैं। आज़ादी के समय और उसके बाद भी, देश के बड़े हिस्से को अत्यधिक गरीबी और भुखमरी का सामना करना पड़ा था। लेकिन एक चीज़ जिससे हम वंचित नहीं थे वह था हमारा खुद पर विश्वास। हम ऐसी सही परिस्थितियाँ बनाने के लिए तैयार हैं जिनमें हर किसी को फलने-फूलने का अवसर मिले।
द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि चल रहे महाकुंभ को उस विरासत की समृद्धि की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है। हमारी परंपराओं और रीति-रिवाजों को संरक्षित और पुनर्जीवित करने के लिए संस्कृति के क्षेत्र में कई रोमांचक पहल चल रही हैं। भारत महान भाषाई विविधता का केंद्र है। इस समृद्धि को संरक्षित करने के साथ-साथ जश्न मनाने के लिए, सरकार ने असमिया, बंगाली, मराठी, पाली और प्राकृत को शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता दी है। इस श्रेणी में पहले से ही तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उड़िया शामिल हैं। सरकार अब 11 शास्त्रीय भाषाओं में अनुसंधान को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रही है।