-शिब्बू गाजीपुरी
समय तेजी से बदल रहल बा। एह युग परिवर्तन क दौर में बहुत कुछ बा जवन लुप्त हो रहल बा भा लुप्त हो गइल बा। अब बहुत कम गाँव मिलिहन स जहाँ अजुओ रात में अँजोर खातिर लालटेन भा ढिबरी क प्रयोग कइल जात होखे। एही तरह लइकन क खेल-कूद में भी बहुत कुछ बदलाव आ गइल बा। गुल्ली-डंडा, ओल्हापाती, गेना-भड़भड़ भा भड़भड़उवल, लइकिन क गोटी खेलल भा तीती-तीती क खेल अब ओरात जा रहल बा। बड़ स्तर प क्रिकेट, हॉकी, कबड्डी, कुस्ती अउरो दूसर खेलन के भरपूर बढ़ावा मिल रहल जवन ठीक बात बा, बाकिर देहाती खेल जवन गरीब देस के गरीब लइकन के खेल रहे, ओराइल जा रहल बा। एह बात पर इहो सोचल जा सकेला कि गरीबी दूर हो गइल एसे ई कुल खेलन क जरूरत आज क लइकन के नइखे। आज क नवकी पीढ़ी त एगो अउरो खेल क चक्कर में फँस गइल बा, हम फँसत सबद क प्रयोग एसे करत बानी काहें कि ओमा सिवाय नुकसान क कुछऊ नइखे मिले वाला अउर ऊ खेल बा ‘मोबाइल गेम’ जवना में आज-काल के लइका उलझ के आपन बहुत कुछ गँवा बइठत बाड़न। लइकन क आँख पर अधिकांश मात्रा में जवन चश्मा चढ़ल लउकत बा ओमा मोबाइल के बहुत बड़ भूमिका बा।
पुरान जमाना क खेल क बात कइल जाव त बरसात क दिन में खरिहान में अउर जोतल खेतन में चिक्का, कबड्डी, उढ़ा कूदल, बरगत्ता अइसन खेल खेलल जात रहे। जाड़ा क दिन में खेलल जाए वाला खेलन क बात कइल जाव त लुग्गा (कपड़ा) क बनावल गेना से गेना भड़भड़ अउर हाकुड़ खेलल जाव। हाकुड़ मतलब हॉकीए होखे जवन भारत क राष्ट्रीय खेल ह। हाकुड़ खेले में हॉकी अउर ओकर गेना (गेंद) अलगे ढंग क होखे। बँसवार क खूँटी में से नीचे से घुम्मल बाँस के काट के हाकुड़ (हॉकी-स्टिक) बना लिहल जाव अउर बाँस क जर (जड़) से गोल गाँठ काटके ओकर गेना बनावल जात रहे। एमा एगो अउर मजेदार बात होखे कि जाड़ क दिन में लोग आग तापे खातिर कउड़ (अलाव) जरावंस ओही कउड़ में बाँस क गाँठ क बनावल गेना डाल देहल जाव जवन आग क गोला बन जाय। एकरी बाद ओके आगी से निकाल के लइका बाँस क हाकुड़ से मार-मार के खेलंस और गेना एक ओर से मराय त दूसरी ओर जात क फरफर-फरफर आग क लुत्ती (चिंगारी) छोड़त जाय। अन्हरिया भा अँजोरिया क गदहबेर (गोधुली-वेला) में एह खेल क आनंद अद्भुत होखे।
जाड़ा-पल्ला क दिन में जब सब केहू दुबकल रहे तब लइका मैदान में चउकड़ी भरत लउकं स। एह पर कउड़ तर आगी तापत एकादगो बूढ़ लोग जब भुसुराय कि एह जड़वो में इन्हनी (लइकन) के चैन नइखे, इन्हनी के जाड़ो नइखे लागत का? त ओही में बइठल मस्त-स्वभाव वाला कवनों बूढ़ जवाब देत कहें, ए भाई! सुनले नइख का? कि जाड़ का कहेला। एपर झनकाह बूढ़ लोग झनक के पूछे, का कहेला? त दुसरका बूढ़ जवाब में बतावंस, जे जाड़ कहेला, लइकन के छूवब ना, जवान हमरो भाई, बुढ़वन के छोड़ब नाहीं चाहें केतनों ओढ़िहन रजाई।