एसबी संवाददाता
वाराणसी। मैथिल समाज, उत्तर प्रदेश द्वारा चौखंम्भा स्थित भारतेन्दु भवन में मिथिला का नववर्ष के पूर्व संध्या पर मिथिला नववर्ष अभिनंदन समारोह (जुड़शीतल) के रूप में मनाया गया। सर्वप्रथम आगत अतिथियों द्वारा मिथिला संस्कृति के प्रतीक कवि कोकिल विद्यापति के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलित करके समारोह का उद्घाटन किया गया।
समारोह के मुख्यमंत्री अतिथि उत्तर प्रदेश बार कौंसिल के पूर्व चेयरमैन अरूण कुमार त्रिपाठी को संस्था के अध्यक्ष निरसन कुमार झा एडवोकेट ने मिथिला संस्कृति के प्रतीक पाग, दुपट्टा, कवि कोकिल विद्यापति का चित्र और माला पहनाकर सम्मानित किया गया।
समारोह के मुख्य अतिथि अरूण कुमार त्रिपाठी ने कहा की आम मैथिल जनमानस को समर्पित पाकेट मिथिला पंचांग में मिथिला के पर्व, त्योहार, लगन, विवाह, द्धिरागमन, जनेऊ, मुण्डन, गृहप्रवेश आदि तिथियों को दशार्या गया है जिससे कि प्रवासी मैथिल परिवार भी पंचांग के अनुसार अपने कार्य संपादित कर सके।
समारोह की अध्यक्षता कर रहे बनारस बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सतीश तिवारी ने कहा कि पीछले कुछ दशकों में आधुनिकीकरण के कारण ग्लोबल वार्मिंग जैसी चीजें बढ़ती जा रही हैं, ऐसे में पर्यावरण को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक हो गया है। जुड़शीतल का पर्व मुख्य रूप से प्रकृति से जुड़ा हुआ है। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ते खतरे के बीच जुड़ शीतल जैसे त्योहार हमें प्रकृति के प्रति प्रेम, सद्धाव और प्रकृति संरक्षण की प्रेरणा देते है।
अति विशिष्ट अतिथि बनारस बार एसोसिएशन के महामंत्री शशांक श्रीवास्तव ने कहा की जुड़ शीतल का प्रकृति से सीधा संबंध है। इस मौके पर बड़े बुजुर्ग अपने से छोटे लोगों के सिर पर बासी पानी डालकर ‘जुड़ैल रहु’ का आशीर्वाद देते हैं। मिथिलांचल के लोगों का मानना है की इससे पुरी गर्मी मस्तिष्क और पुरा शरीर प्रकृति के अनुकूल बना रहता है,साथ ही मिथिलावासी इस दिन संध्या को पेड़ पौधों में जल डालते हैं, जिससे गर्मी के मौसम में भी पेड़ पौधे हरे भरे रहें। जिस प्रकार मिथिला के लोग छठ लोक महापर्व पर सूर्य और चौरचन पर्व पर चन्द्रमा की पूजा करते हैं उसी प्रकार जुड़ शीतल पर मैथिल समाज के लोग जल की पूजा करते हैं और भीषण गर्मी में शीतलता की कामना करते हैं। इस दिन तुलसी के पौधे में जल डालने का विशेष महत्व है।
समारोह में मिथिला लोक संस्कृति की हुई मनोहारी प्रस्तुति: मिथिला नववर्ष अभिनंदन समारोह में लोकनृत्य झिझिया जिसे बरसात कराने का नृत्य भी कहा जाता है इस भीषण गर्मी में भगवान इन्द्र को खुश करने के लिए मनोहारी झिझिया, जट जटीन, समाचकैबा, लोकमहापर्व डाला छठ, जय जय भैरवी, गणेश वंदना की मनोहारी प्रस्तुति बृष्टि चक्रवर्ती, सृष्टि यादव, इषिता मुखर्जी, कावेरी महंत, श्रेया विश्वकर्मा, यशन्वी शुक्ला, सिमरन सिंह, आकांक्षा साहनी, आंचल सिंह, पायल सिंह, अन्शु साहनी, सुनैना राव के द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम के अन्त में अमित श्रीवास्तव ने भावपूर्ण नृत्य के माध्यम से रावण और जटायु के युद्ध का संगीतमय प्रस्तुति देकर समारोह में चार चांद लगा दिया।
समारोह का संयोजन/संचालन गौतम कुमार झा एडवोकेट) ने और सहसंयोजन मालिनी चौधरी ने किया, स्वागत दीपेश चन्द चौधरी और धन्यवाद संस्था के अध्यक्ष निरसन कुमार झा (एडवोकेट) ने किया।
समारोह में प्रमुख रूप से दास पुष्कर, अनिशा शाही, डा दिनेश पाण्डेय, नित्यानंद राय,अजय विक्रम, भगीरथ मिश्रा, ओम शंकर श्रीवास्तव, दीपक राय कान्हा, मनोज मिश्र, सुधीर चौधरी, आनन्द राय, नटवर झा, आदि लोग शामिल थे।