-शिब्बू गाजीपुरी
प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर लागे वाला कुम्भ के मेला आपन ऐतिहासिक और पौराणिक महात्म्य खातिर खाली भारत में ही ना बल्कि विश्व में विख्यात बा। एह साल भी मेला पूस महीना क पुर्नवासी से शुरू हो गइल बा जवन पूरा माघ चली अउर फागुन क सिरात (शिवरात्रि) के पुर्न होखी। कुम्भ के बात कइल जाव त-तीन साल पर कुम्भ, छ: साल पर अर्धकुम्भ, बारह साल पर पूर्णकुम्भ अउर एक सौ चउवालिस साल पर महाकुम्भ के समय आवेला। महाकुम्भ के संयोग केहु-केहु के जिनगी में आवेला काहे कि एकरा समय अंतराल के देखल जाव त एगो महाकुम्भ से दुसरका महाकुम्भ के बीच कई गो पीढ़ी आपन-आपन जीवन जी के स्वर्गलोक के सिधार जाई। एह साल क महाकुम्भ क अलौकिक संयोग कुछ लॉगिन क जिनगी में आइल बा बाकिर सभे लोग एह पुण्य क भागी होखे ई संभव नइखे। जेकर सौहड़ बन पावता ऊ त्रिवेणी जी में आस्था के डुबुकी लगा लेत बा अउर जेकरा भाग में नइखे ऊ लोग अपना निवास स्थान से ही मनही मन ओह तीर्थ के दर्शन कर रहल बा। कुछ लोग उहाँ से लौटे वाला तीर्थ-यात्रियन क चरण-धूलि लेके के कुछ पुण्य के भागी बनल चाहत बाड़न।
एह दिव्य महाकुम्भ में संत-महात्मा अउर गृहस्थ इकट्ठा होलन। तेरह गो अखाड़न क चर्चा विशेष रूप से रहेला जेकर पहिला स्नान (अमृत स्नान) कुम्भ मेला क सौन्दर्य होखेला। समय क अनुसार एह मेला का रूपरेखा, व्यवस्था में परिवर्तन भइल स्वाभाविक बा बाकिर एह महामेला क मूल स्वरूप यानी स्नान क पारंपरिक स्वरूप आज भी देखे के मिल रहल बा जवन प्राचीन समय से चलल आ रहल बा। अजुओ अखाड़ान क स्नान क भव्यता देख के मेला में उपस्थित श्रद्धालु लोग परम सौभाग्य अउर आनंद के अनुभूति करेला।
महाकुम्भ तीर्थ-क्षेत्र में गृहस्थ लोग अपना आस्था क अनुसार कल्प-वास करेला यानी किराया पर मिले वाला कुटिया (टेंट) में निवास करेला। ई कल्पवास क बारे में बतावल जाला कि कल्पवास क अवधि भरसक एक महीना क होखेला बाकिर कुछ श्रद्धालु अपना व्यवस्था क हिसाब से कल्पवास करेलन। कल्पवास त संत महात्मा भी करेलन। अलग-अलग धार्मिक संगठन पंडाल डाल के कथा-प्रवचन क भी आयोजन करेला जवना क लाभ उहाँ पहुँचल भक्त लोग उठावेला।
नया दौर में एगो विशेष परिवर्तन देखे के मिल रहल बा। पहिले बड़े-बड़े महंत-महात्मा लोग एह महामेला में आवें अउर समाज के धर्म क संदेश देवें जवना संदेश क चर्चा समाचार क सुर्खी बने अउर लोग ओह उपदेशन के अपना जीवन में उतारे के प्रयास करें बाकिर एह सोशल-मीडिया क दौर में एगो विचित्र बदलाव देखे के मिल रहल बा, पहिले जहाँ महात्मा लोग के संदेश प्रचारित-प्रसारित होखे यानी आज क भाषा में वायरल होखे अउर जवन संदेश महाकुम्भ क क्षेत्र से निकल के आपन देश ही ना विदेश तक पहुँचे ओही पवित्र धरती से आज विचित्र-विचित्र संदेश वायरल हो रहल बा जवना संदेश क संबंध धर्म से दूर-दूर तक नइखे। खैर आपन-आपन पसंद। अबकी बार ई लागल कि सोशल प्लेटफॉर्म आपन वास्ता 144 वर्ष पर आवे वाला एह महाकुम्भ से कम बाकिर ओइजहाँ चल रहल सौन्दर्य प्रतियोगिता से ज्यादा रख रहल बा। एही संदर्भ में साध्वी हर्षा क चर्चा सुर्खी त बनले रहे बाकिर ओह मेला में रुद्राक्ष क माला बेचे आइल बिटिया मोनालिसा क आँख क सुंदरता क चर्चा खूब वायरल भइल। ओह वायरल भइला से बिटिया मोनालिसा अपना सुरक्षा के लेके भयभीत हो उठल अउर ऊ अपना सुरक्षा क गोहार सरकार से लगवलस। कुछ लोग ओकरा सौन्दर्य के तुलनात्मक ढंग से भी देखे के प्रयास कइलस। एह बारे में लोगन क कहना रहे कि देश-दुनिया में अपना सौन्दर्य क जादू बिखेरे खातिर लोग तरह-तरह के प्रदर्शन कर रहल बा लेकिन एगो मोनालिसा क रूप में प्रकृतिक सौन्दर्य सीधा-सादा वस्त्र में बिना प्रयास क वायरल हो रहल बा जवना से दुनिया के सबक लेबे के चाहीं। एगो अउर बात बा-मोनालिसा सौंदर्य प्रदर्शन करे त आइल ना रहे बल्कि ऊ मेला में पेट खातिर रोटी कमाए आइल रहे लेकिन दुनिया क अत्याचार से तंग आके ऊ मेला से भाग गइल। जहाँ ऊ ई सोचके आइल रहे कि कुछ दिन क रोजी क व्यवस्था हो गइल लेकिन ऊ का जानत रहल कि ऊ एह तमाशाई दुनिया में एगो तमाशा बन के रह जाई। भोजपुरी में एगो कहावत बा कि चिरई क जान जाय अउर लइकन क खेलवना।